उपनयन संस्कार : जनेऊ /यज्ञोपवीत

यह सोलह संस्कारों में से एक संस्कार है, जिसमें, बालक को, जनेऊ धारण कराया जाता है। उपनयन विवाह पूर्व का संस्कार नहीं होता। यह विद्या और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने योग्य बनाने वाला संस्कार है। इसीलिए प्राय: बाल्यावस्था (५ वर्ष) की. समाप्ति के बाद यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। यह स्नातक बनने की प्रक्रिया है। उचित समय पुर जिनका उपनयन नहीं होता उन्हें विवाह से पूर्व जनेऊ पहनाया जाता है।

प्रायः जनेऊ संस्कार प्रात: काल में ही किया जाता है। प्राय: दो बालकों का एक साथ यज्ञोपवीत होना चाहिए

तैयारी

  • ५ केसरिया रंग में रंगे हुए नये वस्त्र (कुर्ता, धोती, गंजी, अण्डरवीयर, रुमाल)
  • सवा गज खादी का चौकोर कुपड़ा केसरिया उँग कुर 
  • भिक्षा की थैली के लिए चादर, (केसरिया उँगाकर) : यह दोनों के कंधे पर रखी जाती है।
  •  लकड़ी की खड़ाऊँ बालक व उपाध्याय जी कमर में बाँधने के लिए मुञ्ज (नारियल) की रस्सी
  • बाँस की लकड़ी (बालक के पाँव से नाक की लम्बाई तक)।
  • जनेऊ - कुशा के आसन-बैठने के लिए
  • भिक्षा के लिए मेवा - बादाम, किशमिश, काजू, छुआरी (कटी हुई)
  • हरा पिश्वा, गुट् (कट्टा हुआ) मिश्री
  • उपाध्याय जी के लिए नये वस्त्र
  • पाँच पंडित, जो हवन कराते हैं, उनके लिए नये वस्त्र
  • (धोती, कुर्ता, गंजी, टोपी, रुमाल या ग्रमुच्छा) 
  • संध्या की पुस्तक- संस्कार विधि श्रीमत् दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित

हवन की सामग्री

  • हवन कुण्ड
  • हवन की चम्मच,
  • पञ्चपात्र, पञ्चपात्र की चम्मच
  • लोटा जल के लिए
  • टोपिया घी के लिए, घी "छन्दी (छोटी तश्तरी)
  • समिधा
  • लुकुड़ी
  • अर्गा
  • दीये की बत्ती
  • कपूर
  • माचिस
  • फूल
  • कुलश, उसके ऊपर रखने के लिए दीपक
  • एक थाली में भिक्षा के लिए मेवा बादाम, किशमिश,
  • पिश्ता, मिश्री एवं कटा हुआ हुआरा
  • आरते की थाली (रोली, चावल, दूध, मूँग, गुड़, जुल) 
  • रुपये की थैली (एक कपड़े की थैली जिसमें खुदरा रुपया रखते हैं, जो चढ़ाने आदि के काम आता है, इसी थैली में
  • अलग-अलग नेग के लिफाफे भी रखते हैं)
  • उपाध्याय जी के लिए रुपया
  • पुण्डित जी की दक्षिणा
  • वाराफेरी का लिफाफा
  • आते का रुपया
  • पाँव लगाई के लिफाफे
  • छात का रुपया
  • मिसरानी की दक्षिणा,

बालक के साथ माँ, बापू व घर के सब लोग आसन पर बैठते हैं। उपाध्याय जी जनेऊ का संस्कार कराते हैं। जनेऊ के पश्चात् बहन बुआ आरता करती है। छात- नेबगी, को दी जाती है। * माँ बालक की वाराफेरी करती है। बालक की माँ घर की सब बड़ी महिलाओं को पाँव लगनी देती है। बालक सब घर वालों के पास जाकर 'भिक्षांदेहि कुहूकर भिक्षा माँगता है।घर के सब लोग बालक की थैली में एक-एक मुट्ठी मेवा भिक्षा स्वरूप देते हैं। पक्की रसोई (पूरी आदि) बनती है। भोजन में से पूर्वजों के नाम का छूता निकाला जाता है। पहले पुण्डित जी को जिमाते हैं, फिर घर वाले, भोजन करते हैं। नोटू- यदि बालुक् नियमानुसार जेनऊ धारण करता है. तो रोज की दिनचर्या में उसे कुछ विशेष नियमों का पालन करना पड़ता है।

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